Sunday, October 2, 2011

kuch aur srot !

३० सितम्बर २०११, 
आज मैं कुछ १०० रेलवे की महिला एम्प्लोयीस से मिली ...
उनके लिए एक हापिनेस वोर्क्शोप की...अहमदाबाद में..
मेरे लिए एक बहुत ही ख़ास दिन..

एक बहुत ही ख़ास एक्सपेरिएंस रहा..
शायद उनको भी बहुत अच्छा लगा

हमने अपनी बचपन की प्रार्थना 'हमको मन की शक्ति देना..' से वोर्क्शोप शुरू करी
फिर एक 'ॐ' की ध्वनि पर Visualization Session किया ...
जिसमे 'मैं कैसे एक औरत होकर सबको खुश रख कर ख़ुशी को पा सकती हूँ क्योंकि 'like begets like ...'
कैसे मेरा अस्तित्व सबको ख़ुशी दे सकता है, 
और कैसे मैं अपने जीवन को एक बेहतर मायने दे सकती हूँ...
यानी कैसे 'Proud to  be  a  वोमन..को अंजाम दे सकती हूँ! 
 इस पर visualize  किया...और अपने सपने को आकार दिया!

कुछ तो अपने बचपन में कब सरक गयीं ...पता ही नहीं चला...बस उनकी बातों से एहसास हुआ
और कुछ अपने आज पर, अपनी प्रेसेंट की ब्लेस्सिंग्स को काउंट करने लगी..
जो शायद हम बहुत बार भूल जाते हैं..जो नहीं है बस उसको याद करके दुखी होते हैं...

लेकिन इस हप्पिनेस वोर्क्शोप ने काफी काम किया, 
जिससे हमने अपना 'नहीं है syndrome ' खूँटी पर टांग दिया...
और बस 'क्या है मेरे पास' में हम सब जीने लगे...

कुछ तो मेरा हाथ पकड़ कर रोकने का आग्रह करने लगीं...
और कुछ तो अपने आंसू को रोक नहीं पायीं..
.क़ि पहले कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ, कभी इतना हल्का नहीं लगा..
अपने लिए इतना टाइम बहुत अरसे बाद निकला है !

मैंने तो बस उनको हाथ पकड़ कर उनके ख़ुशी के निर्मल स्रोत से मिला दिया...
यानि...बचपन के वोह पल, और उनके आज के ख़ुशी के निर्मल स्रोत...

----अंजलि निगम 

2 comments:

  1. aise hi khushiyan failati rahiye..aur khud bhi muskurati rahiye....

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  2. Anand, shaayad tumse bahut sara encouragement milta hai...keep inspiring the world!

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