Tuesday, January 3, 2012

Nirmal Sukh kaa Anubhav !

२८ दिसंबर 2011


इस बार फिर हमने शादी की २८वि  सालगिरह २८ दिसंबर को dayalbagh में मनाई..
जल्दी में बस नारियल के बुरे और milkmaid के लड्डू बना लिए प्रसाद के लिए..
मालिक तो प्यार देखते हैं...बस !
बड़े प्यार से उन्होंने मेरी हथेली पर एक लड्डू रख दिया...और कहा की आप दोनों बाँट कर खाईये
और, और भी प्यार से छोटे बेटे आयुष की तरफ देख कर पुछा 'यह बेटा है आपका..' और उसकी हथेली पर भी लड्डू रख दिया बड़े ही प्यार से...!
हे मालिक तेरा लाख लाख शुकराना है..की तुमने हमें इस लायक समझा...
कुल मालिक के मुबारक हाथों से प्रसाद मिलना तो समझो हम धन्य हो गए!

मालिक का हर साल प्रसाद मिलने से हम दोनों और करीब आ गए हैं, कुछ और आपस की समझ आ गयी है
मुझे महसूस होता है एक glue मानो आ गया है हमारी already गुड relationship में !


१ जनवरी 2012
वोह सुबह की आरती..सुबह के साढ़े चार बजे
वोह हलकी सी ठिठुरन ...और थोड़ी सी सिहरन...
इस बार मेरे पति भी मेरे साथ गए...dayalbagh भंडारे पर पूरे पांच दिन के लिए !
 लेकिन सुबह उठना तो बड़ा ही नागवार मालुम पड़ता उनको..
लेकिन फिर भी उठते और मुझे भी टाइम का याद दिलाते..
अरे मैं तो dayalbagh में पहली तारीख के भंडारे की बात कर रही हूँ...
जो हर साल २५ या २६ तारीख पड़ता था...किन्तु इस बार पहली जनवरी को पड़ा
पहले तो मेरे पति को लगा, अरे तो न्यू इयर का क्या होगा ?
कैसे celebrate करेंगे...मैंने भी सोचा, लेकिन फिर भंडारा तो भंडारा है
साल में एक बार ही मिलता है...

हम अपनी होंडा सिटी से ढेर सारे गरम कपडे भर कर चल पड़े, मनो साल के लिए जा रहे हों..
और इस बार दीदी के घर 'मंगलम estate ' में रुकने का फैसला किया...
अच्छा तो लग रहा था की भंडारे पर आ गए, परन्तु दिल्ली से अगरवाल साहब फ़ोन पे फ़ोन करके कहते..
भाई आप लोगों को हम बहुत मिस कर रहे हैं..यू are the  पिलर ! अभी भी तीन घंटे हैं आ जाईये..:)

जब वोह सुबह की आरती के लिए तैयार हुए पौने चार बजे तो बड़ी  ही सर्दी लगी ...
सत्संग भवन में जा कर सिमट कर बैठ गए...
सत्संग शुरू हुआ..और एक निर्मल रस मानो बरसने लगा...
इतना सुंदर एहसास की क्या बताऊँ ..बयान करने में आ नहीं सकता !
वोह मालिक का दर्शन..वोह सुंदर पाठ, और वीणा की झनकार !
सारा शरीर झंकृत हो उठा ...

फिर तो मानो सारा इन्द्र लोक भी मालिक के सदके में झुक गया...
और बदल और हवाएं यूं बहने लगी, जैसे वायु मंडल को भी वीणा के स्वर ने झंकृत कर दिया हो...
और फिर तो वर्षा भी पीछे क्यों रहती... बस ऐसी शुरू हुई की बस उसके सब्र का बाँध टूट गया हो..
मालिक के दर्शन..ठंडी हवाएं, वर्षा और वीणा की झंकार, सत्संग हॉल तो दयाल देश ही मालूम पड़ता था...
मैंने यह समां पहले भी कितनी बार देखा है...लेकिन बस हर बार कलेजे को यूं पकड़ लेता है मानो इसके बाद सांस भी ना आएगी !

और बस आखों से निर्मल धरा कब बह निकली कि पता ही नहीं चला...जब हिचकियाँ बंध गयी तब एहसास हुआ
ऐसा नया साल मनाना, तो शायद कम के नसीब में हो...
सोचती  हूँ - क्या मैं इससे बड़ा 'ख़ुशी का निर्मल स्रोत ढूंढ पाऊँगी' ?
शायद नहीं...हे मालिक तेरा लाख लाख शुकराना जो तुने मुझे यह दिन दिखलाया..
मैं तेरा शुराना किन शब्दों से अदा करूँ!
'क्यूं कर करूँ शुकराने हैं उनके...फिर फिर शुक्राने करते हैं ..'.!

डॉ. अंजलि निगम 

1 comment:

  1. very touching post. aap dono ki zindagi mein Maalik hamesha aise hi khushiyan dete rahe.

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